14.सूरह कद्र

बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम
1. इन्ना अनज़ल नाहू फ़ी लैलातिल कद्र
2. वमा अदराक मा लैलतुल कद्र
3. लय्लतुल कादरी खैरुम मिन अल्फि शह्र
4. तनज़ ज़लूल मलाई कतु वररूहू फ़ीहा बि इजनी रब्बिहीम मिन कुल्ली अम्र
5. सलामुन हिय हत्ता मत लइल फज्र

सूरह कद्र तर्जुमे के साथ

अल्लाह के नाम से शुरु जो बहुत मेहरबान रहमतवाला है
1. बेशक हम ने कुरान को शबे क़द्र में नाजिल फ़रमाया है
2. और आप को मालूम है कि शबे क़द्र क्या है ?
3. शबे क़द्र हज़ार महीनों से बेहतर है
4. इस रात में फ़रिश्ते रूहुल अमीन (जिबरईल अलैहिस सलाम) अपने रब के हर काम का हुक्म लेकर उतरते हैं
5. ये रात (सारापा) पूरी तरह सलामती है, जो सुबह फज्र होने तक रहती है